हर तरह की त्रासदियों का देश भारत... वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल की कलम से
भारत त्रासदियों का देश है । यहां कभी संसद के भीतर त्रासदी होती है तो कभी संसद के बाहर । कभी हाथरस में त्रासदी होती है तो कभी केरल के वायनाड के चूरलामाला इलाके में। कहीं कोई भगदड़ से मरता है तो कहीं कोई भूस्खलन से ,लेकिन इन त्रासदियों के लिए कोई दोषी नहीं ठहराया जाता। गनीमत ये है कि केरल सरकार ने चूरलामाला की त्रासदी के बाद राज्य में दो दिन का रजकीय शोक घोषित किया है । उत्तर प्रदेश में हाथरस हादसे के बाद ऐसा निर्णय नहीं हुआ,क्योंकि उत्तर-प्रदेश में राम राज है और केरल में नही।
मंगलवार को तड़के हुई वर्षा और भूस्खलन वायनाड के चार गांवों के लिए अमंगल लेकर आया । अचानक पानी का बहाव बढ़ा और पहाड़ों ने धसकना शुरू कर दिया। पहाड़ों के मलवे ने पहाड़ों की तलहटी में बसे चार गांवों को देखते ही देखते श्मशान में बदल दिया । आधिकारिक जानकारी के मुताबिक इस प्राकृतिक हादसे में 122 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई है । राहत -बचाव कार्य जारी है। आपदाग्रस्त इलाके के पूर्व सांसद राहुल गांधी और उनकी बहन ने प्रियनका वाड्रा भी पीड़ितों तक पहुँचने के लिए तैयार बैठे रहे लेकिन राज्य सरकार और जिला प्रशासन ने उन्हें खराब मौसम की वजह से वहां जाने से रोक दिया।
आपदाएं कहकर नहीं आतीं । न दिल्ली में और न हाथरस में और न वायनाड में। तमाम त्रासदियों यनि आपदाओं के लिए हम खुद जिम्मेदार हैं । हम प्रकृति के खिलाफ खड़े होकर उसे लगातार उसे चुनौतियाँ दे रहे हैं। लेकिन हम जानते हैं कि प्रकृति सबसे अधिक बलवान होती है। उससे नहीं जूझा जा सकता। हमेशा की तरह इन त्रासदियों के पीड़ितों के बीच माननीय नहीं गए । वे खुद इस समय सबसे बड़ी सियासी आपदा से जूझ रहे हैं। वे मणिपुर नहीं गये । हाथरस नहीं गए । जाकर करेंगे भी क्या ? उनके हाथ में तो कुछ नहीं है। वे भले ही अपने आपको भगवान का अवतार मानते हों लेकिन वे अवतार तो नहीं हैं।
वायनाड त्रासदी में फंसे लोगों की सेवा में सेना और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के जवान लगे है। वहां राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ का कोई प्रशिक्षित कार्यकर्ता नहीं है। होता तो भी शायद वो कुछ कर नहीं पता क्योंकि आजकल संघ ने सेवा कार्यों से अवकाश ले रखा है। संघ प्रमुख इन दिनों भाजपा को उत्तर प्रदेश ,हरियाणा,महाराष्ट्र और झारखण्ड में बचाने में लगे हैं। केरल में डबल इंजिन की सरकार नहीं है । केरल सरकार भी मुमकिन है कि पीड़ितों को अपेक्षित सहायता न पहुंचा पायी हो ,लेकिन केंद्र की सनातनी सरकार ने भी वायनाड के पीड़ितों के लिए अपना खजाना नहीं खोला। ये खजाना तो सरकार को समर्थन देने वाली टीडीपी और जेडीयू को मिनिमम समर्थन मूल्य देने के लिए खुलता है।
मैंने हाल ही में कहा था की हमारे देश में मानव जीवन की कोई कीमत तय नहीं है। । हम सब कीड़े-मकोड़े है। सरकार त्रासदियों के समय मरने वालों को 50 हजार रूपये दे या पांच करोड़ रूपये, ये उसकी मर्जी है। फिर केरल वाले तो दिल्ली की आंख की किरकिरी हमेशा से रहे हैं। केरल ने आजतक भाजपा का साथ नहीं दिया ऐसे में दिल्ली वायनाड के पीड़ितों को सहायता कैसे दे सकती है।?वायनाड से जो तस्वीरें आ रहीं हैं ,वे हृदयविदारक हैं। लोग कीचड़ में ,मलबे में दबे हैं। इन लोगों को मदद की जरूरत है । जिन अभागों तक मदद नहीं पहुँच सकी वे मारे जा चुके हैं। लेकिन हमारा देश,हमारी संसद, वायनाड त्रासदी के मुकाबले दिल्ली की त्रासदी पर सियासत में उलझी हुई है।
मुझे वायनाड की तस्वीरें देखकर महाराष्ट्र का लातूर याद आ रहा है। 1993 में भूकंप ने लातूर को तबाह कर दिया थ। 2024 में भूस्खलन ने वायनाड के चार गांवों को जमीदोज कर दिया है। मुमकिन है कि ये हादसा इस इलाके का प्रारब्ध हो और मुमकिन है कि इस हादसे के लिए केरल की राज्य सरकार जिम्मेदार हो। केरल में भले ही सनातनियों की सरकार नहीं है लेकिन उसे लोगों के सुख-दुःख का पता है। केरल सरकार ने दो दिन का राजकीय शोक घोषित किया है। वैसे ये राष्ट्रीय शोक है । इस हादसे पर संसद में उसी तरह शृद्धांजलियाँ अर्पित कि जाना चाहिए जिस तरह पिछले दिनों दुसरे मृतकों के लिए किया गया था। प्रकृति का रौद्र रूप हमने हिमाचल में भी देखा है इसलिए हम चाहते हाँ कि वर्षा ऋतु में आपदाओं से निबटने के लिए एक समान और व्यापmक नीति बनाई जाना चाहिए।
मै वायनाड की त्रासदी से बुरी तरह आहत हूँ ,लेकिन मेरे या आपके दुखी होने से क्या हासिल ? दुखी तो सरकारों को होना चाहि। सदन में इस त्रासदी पर कोई ' काम रोको प्रस्ताव लेकर आये । बहस हो। सरकार बताये कि उसने आपदागस्त राज्यों के लिए क्या राण नीति बनाई है ? सरकार आपदाग्रस्त राज्यों के साथ पार्टीगत राजनीति से ऊपर उठकर। सरकार के पीएम केयर फंड से पैसे निकलकत हिमाचल और केरल की मदद करे ।
@ राकेश अचल