जेयू: एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित, भारतीय ज्ञान परंपरा पर हुआ मंथन,जेयू और मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी के मध्य हुआ अनुबंध

ग्वालियर। भारतीय ज्ञान परंपरा प्राचीन काल से समृद्ध रही है और संपूर्ण विश्व का मार्गदर्शन किया है। आज इस भारतीय ज्ञान परंपरा पर संपूर्ण विश्व को विश्वास है। भारतीय ज्ञान परंपरा तभी स्थापित हो सकती है,जब छात्र पुस्तकालय से जुड़े । समाज देश विश्व आज भारत की संस्कृति की ओर देख रहा है। भारतीय ज्ञान परंपरा को हम विद्यार्थी तक पहुंचाना चाहते हैं। भारतीय संस्कृति का अर्थ है आपने  जो पढ़ा है उसे जीवन में उतारिए भारतीय संस्कृति को जीवन में उतारने की आवश्यकता है।भारत की दृष्टि विश्व के कल्याण के लिए रही है।यह बात सोमवार को मप्र हिंदी ग्रंथ अकादमी भोपाल के संचालक अशोक कडेल ने जेयू में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि कही। विशिष्ट अतिथि के रूप में आईआईटीटीएम के निदेशक डॉ. आलोक शर्मा, शिक्षाविद एवं मानस मर्मज्ञ डॉ. उमाशंकर पचौरी व वक्ता के रूप में डॉ.भीमराव आंबेडकर विवि के ग्रंथालय एवं सूचना विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. यूसी शर्मा उपस्थित रहे। वहीं अध्यक्षता जेयू के कुलगुरु प्रो.अविनाश तिवारी ने की।छात्राओं द्वारा सभी अतिथियों को  तिलक लगाकर स्वागत किया गया। प्रो. हेमंत शर्मा ने स्वागत भाषण देते हुए कार्यक्रम की रूपरेखा बताई। कार्यक्रम में सभी अतिथियों को शॉल श्रीफल व स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के दौरान अतिथियों द्वारा केंद्रीय ग्रंथालय में हिन्दी ग्रंथ अकादमी के केन्द्र का शुभारंभ किया गया। तत्पश्चात मप्र हिंदी ग्रंथ अकादमी व जेयू के बीच अनुबंध किया गया। संगोष्ठी में भारतीय ज्ञान परंपरा के आलोक में राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर मंथन किया गया।इसी क्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ. उमाशंकर पचौरी ने कहा कि भारत की संस्कृति त्याग की संस्कृति है। भारत का इतिहास गौरवमयी इतिहास है। भारतीय ज्ञान परंपरा को स्थापित करने के लिए शोध करने की आवश्यकता है। इसके लिए पुस्तकालयों को खंगालना पड़ेगा। भारतीय ज्ञान परंपरा के लिए शोध, चिंतन,मनन की आवश्यकता है। डॉ.आलोक शर्मा ने कहा कि भारत में ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी पुस्तकालय के माध्यम से ही आया है। डिजिटल रूप से भारतीय पुस्तकालय ने और अधिक सुविधा दी है।राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार जो नीति लागू की गई है उसमें भारतीय ज्ञान परंपरा को महत्वपूर्ण विषय के रूप में जोड़ दिया गया है। उन्होंने आदिगुरु शंकराचार्य का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा को बनाए रखते हुए युवाओं को दिशा दी।कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जेयू के कुलगुरु प्रो. अविनाश तिवारी ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा हमें प्रकृति के नजदीक ले जाती है। भारतीय ज्ञान परंपरा पर्यावरण संरक्षण का ज्ञान देती है। भारतीय ज्ञान परंपरा, भौतिक एवं सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाएगी। छात्रों को पुस्तकालय में जाना चाहिए। पांडुलिपियों में भारतीय ज्ञान परंपरा की झलक आपको देखने को मिलेगी। भारत का प्राचीन ज्ञान आने वाली पीढियां के लिए महत्वपूर्ण रहेगा।जितने छात्र पुस्तकालय जाते हैं, वहीं छात्र जीवन में आगे जाते हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा हमें पुस्तकालय की ओर आकर्षित करती है।मुख्य वक्ता प्रो. यूसी शर्मा ने भारतीय ज्ञान परंपरा की आधुनिक परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता व मूल्यों पर प्रकाश डाला। शान्या जैन, दामिनी पांडे,विकास सिंह गुर्जर, आदित्य मिश्रा द्वारा शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। कार्यक्रम में अतिथियों द्वारा छात्र छात्राओं को प्रमाण पत्र वितरित किए गए। वहीं समापन सत्र में वक्ता के रूप में उपस्थित मध्य भारतीय हिन्दी साहित्य सभा ग्वालियर के अध्यक्ष डॉ. कुमार संजीव ने कहा कि किसी भी विश्वविद्यालय के लिए गौरव का विषय है कि उसका ग्रंथालय कैसा है। विश्वविद्यालय महाविद्यालय से व्यक्ति शिक्षित हो सकता है, लेकिन दीक्षित होने के लिए उसे ग्रंथालय जाना पड़ेगा। समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित आईटीएम विवि के समकुलाधिसचिव दौलत सिंह चौहान ने कहा कि ज्ञान से प्राप्त होने वाली प्रज्ञा केंद्र में है। जब तक शिक्षा ज्ञान और कौशल पर आधारित रहेगी तब तक हम पूर्वजों के दिए ज्ञान को प्राप्त नहीं कर सकते। ज्ञान अहंकार पैदा करता है और प्रज्ञा शांत और विनम्र बनाती है। यह ज्ञान से प्रज्ञा की ओर अग्रसर होने का समय है।आयोजन सचिव प्रो. हेमंत शर्मा ने भारतीय ज्ञान परंपरा पर नए प्रयोगों और भारतीय ज्ञान परंपरा के बढ़ते महत्व पर चर्चा की।उन्होंने कहा कि इस तरह की संगोष्ठियां राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय ज्ञान परंपरा के महत्व को आगे बढ़ाएंगी।कार्यक्रम का संचालन रजनी व आभार व्यक्त प्रो. शांतिदेव सिसौदिया ने किया।इस मौके पर  डॉ एस के सिंह, डॉ संजीव गुप्ता, डॉ अशोक चौहान, इसी मेंबर संजय यादव, प्रदीप शर्मा,प्रो. शांतिदेव सिसोदिया, प्रो. एसएन महापात्रा, प्रो. एमके गुप्ता, प्रो. मनोज शर्मा, प्रो.डॉ. स्वर्णा परमार, डॉ सुशील मंडेरिया,प्रो. राधा तोमर, डॉ विमलेन्द्र सिंह राठौर, डॉ सतेन्द्र सिकरवार, डॉ रामशंकर,डॉ. सुमन जैन, डॉ. हरिशंकर कंषाना, शकील, संजय, अश्विनी त्रिपाठी सहित शोधार्थी व छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।

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