कैसे हो गये हम....

प्रदीप जोशी
इंदौर...
देश में हाल ही में एक घटना घटी वो थी चीते का भारत आगमन। बिल्कुल सामान्य सी बात हैं कि वन्य वैज्ञानिक या पर्यावरणविदो ने वर्षो पहले से योजना बनाई कि चीता हमारे देश से लुप्तप्राय हो गये तो इन्हें किसी भी बाहरी देशो से मंगवाकर स्थापित करना और पर्यावरण संतुलन को बरकरार रखना। उन्होंने उस समय की सरकार को ये बताया, सरकार ने स्वीकार किया और फिर चीतो की विभिन्न देशो से खोज करना उनकी संपूर्ण चिंता कैसे होगी फिर न्यायालय की भी उनके ऊपर वाजिब चिंता। इन सभी बातो पर संपूर्ण चिंतन के बाद एक देश नामीबिया से चीते लाकर इस परियोजना का महत्वपूर्ण भाग पुरा हुंआ। इस तरह के और भी बहुतेरे काम होते रहेंगे। इतनी अच्छी घटना का देश के लोगो ने क्या वातावरण बनाया लग गये एक दुसरे की छीछालेदार करने श्रैय लेने की होड़ में एक दुसरे की जो टांगखिंचाई हमने की उसको देखकर दुनिया हम पर हंस ही रही होगी। एक महाशय ने तो हद ही कर दी इसको भी देशप्रेम और देशद्रोह से जोड़ दिया। सोचिये कि हमने अपना कितना समय और ऊर्जा इस पर व्यर्थ नष्ट कर दी। समय और ऊर्जा आपकी है इसलिये आपको ही तय करना हैं कि इसे कैसे खर्च करना पर सामान्य घटनाओ का इसी तरह हम बतंगड़ बनाते चले गये तो ऐसा ही दुषित वातावरण हमेशा बना रहेगा और दुषित वातावरण में आप एक दुसरे की खिल्ली तो उड़ा सकोगे पर देश ठहर जायेगा ये तय हैं।

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