केवल 438 वर्ष पुराना है ईस्वी सन्, भारत में इसका प्रचलन 268 वर्ष पूर्व ही

ग्वालियर। जिस ईस्वी सन परिवर्तन के आधार पर हम आज नववर्ष मना रहे हैं इसका आरंभ ईसा मसीह के जन्म से नहीं हुआ था और न यह ही निश्चित है कि इसीदिन ईसा मसीह का जन्म हुआ था । उनके नाम पर इस सन् का आरंभ केवल 438 वर्ष पहले ही हुआ था । और उनकी जन्मतिथि का अनुमान करके ही इसके आरंभ को मान्यता दी गई थी । जबकि इस ईस्वी सन्  कैलेण्डर का भारत में प्रचलन मात्र 268 वर्ष पहले ही हुआ था । इसकी शुरुआत करने वाले वे अंग्रेज थे जो व्यापार के लिये भारत आये थे और यहाँ शासक बनने लगे थे । इस संवत् को वैश्विक बनाने का श्रेय भी उन अंग्रेजों को है जो पूरी दुनियाँ में व्यापार या शासन करने के लिये लंदन से निकले थे । वे अपनी जड़ो और अपनी परंपरा से इतने गहरे जुड़े रहे कि उन्होंने पूरी दुनियाँ को अपने परिवेश में ढालने का प्रयास किया।

 यह अंग्रेजों की संकल्प शक्ति ही है कि आज पूरी दुनियाँ में उन्ही के कैलेंडर से गणना होती है । यदि हम किसी स्थानीय कैलेण्डर का उल्लेख करें तो भी उसकी गणना के लिये मानक हमें अंग्रेजी महीनों और तिथियों का ही सहारा लेना पड़ता है । जबकि इसमें सम्मिलित महीनों के नाम भी अंग्रेजों के अपने नहीं हैं उन्होंने इधर उधर से उठाकर तैयार किये थे । समय के साथ इसके कयी स्वरूप बदले महीने कम और अधिक हुये दिन भी घटे बढ़े । लेकिन आज सब श्रेय अंग्रेजों को ही है । जबकि यह संसार का प्राचीनतम संवत् नहीं है ।

संसार के ज्ञात इतिहास में जितने भी सन् संवत् या न्यू एयर परंपराएँ मिलतीं हैं उनमें सबसे प्राचीन परंपरा भारत में युगाब्ध संवत् की मानी जाती है जो लगभग 5122 वर्ष पूर्व आरंभ हुआ था । इसका संबंध  महाभारत काल से है । यह संवत् युधिष्ठिर के राज्याभिषेक की तिथि से आरंभ हुआ था । इसका सत्यापन द्वारिका के किनारे समुद्र की पुरातत्व खुदाई में मिली सामग्री से होती है । जिसका कालखंड पाँच हजार से पाँच हजार दो वर्ष के बीच ठहरता है । संवत् का दूसरा प्राचीन उल्लेख बेबीलोनिया से मिलता है । इस संवत् का इतिहास लगभग चार हजार वर्ष पुराना है । तब वहां नववर्ष का आरंभ बसंत ऋतु से होता था ।  यह तिथि लगभग एक मार्च के आसपास ठहरती है । हालाँकि तब वहां माह के नाम उनके अपने थे । 

तीसरा प्राचीन नववर्ष पारसी नौरोज है ।  जिसका आरंभ लगभग तीन हजार वर्ष पहले हुआ था । पारसी नौरोज 19 अगस्त से आरंभ होता है । चौथा प्राचीन संवत् भारत का विक्रम संवत है जो महाराज विक्रमादित्य के राज्याभिषेक से आरंभ हुआ था । 

जिस ईस्वी संवत् का प्रचलन आज पूरी दुनियाँ में है इसका आरंभ रोम से हुआ था । पहले वहां के राजा न्यूमा पोपेलियस ने किया था । कहते हैं इसे आरंभ करने का श्रेय भारत के उन विद्वानों को है जिन्हें सिकन्दर  अपने साथ ले गया था । तब इसमें केवल दस माह और 354 दिन ही हुआ करते थे । कहते हैं राजा बारह माह का कैलेण्डर बनाने तैयार न हुआ था । बाद में रोम के शासक जूलियट सीजर ने आज से 2065 वर्ष पूर्व उस कैलेण्डर में अनेक परिवर्तन करने के आदेश दिये और बारह महीने का बनाया था । उसके पहले वर्ष में 445 दिन थे । और माह की संख्या बारह

वर्तमान ईस्वी सन् का आरंभ  438 वर्ष पूर्व पोप ग्रेगरी अष्टम ने किया था । और रोम के सीजर संवत् से हिसाब लगाकर ईसा मसीह के जन्म से जोड़कर सन् 1582 निर्धारित किया था । इसमें समय के साथ अनेक परिवर्तन हुये । जब यह आरंभ हुआ तब इसमें लीप एयर या हर चौथे साल फरवरी 29 दिन का नहीं था । इसकी गणना खगोल अनुसंधान के बाद अमेरिकी वैज्ञानिकों  ने सूर्य और पृथ्वी परिक्रमा की गणना करके जोड़ा । जबकि भारत में पाँच हजार वर्ष पुरानी गणना भी बारह माह की थी । वर्ष के आरंभ के लिये ऋतु परिवर्तन का अध्ययन करके तिथि निर्धारित हुई थी । 

सामान्यतः यह केवल  कैलेण्डर गणना का परिवर्तन है ऋतु का नहीं और न प्रकृति के किसी परिवर्तन का प्रतीक ही है ।

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