व्यक्ति को प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कभी हार नहीं मानना चाहिए-मुनिश्री
ग्वालियर। जिस कार्य से आपको भय लगता हो, वह कार्य सबसे पहले प्रारंभ करें। जहां बुलंद इरादे हैं, कुछ करने की तमन्ना है, वहां मंजिल सरल हो जाती है और ईश्वरीय मदद भी मिलती है। व्यक्ति को प्रतिकूल परिस्थितियों में भी कभी हार नहीं मानना चाहिए। किसी क्षेत्र में जब व्यक्ति बार-बार असफल होने लगता है तो वह हार मान लेता है और विमुख होकर दूसरे व्यवसाय की तलाश करता है लेकिन साहसी कभी हारता नहीं। सूझबूझ से सफलता प्राप्त कर लेता है। यह विचार क्रांतिकारी मुनिश्री प्रतीक सागर महाराज ने आज मंगलवार को सोनागिर स्थित आचार्यश्री पुष्पदंत सागर सभागृह में संबोधित करते हुए कही!
मुनिश्री ने कहा कि किसी भी कार्य को करने से पहले अपने आपसे कहिए मैं यह कार्य कर सकता हूं और कार्य करके ही रहूंगा। अपनी मनोदशा को सकारात्मक बनाएं। कार्य के प्रति पूर्ण विश्वास होना चाहिए। समर्पण के साथ प्रयत्न करें, सफलता अवश्य मिलेगी। हिम्मत न हारिए, भूलिए न राम को, इस युक्ति को याद रखें। भय हमारी प्रगति का गला घोंट देता है अतः भय से बचें। अपने आपको सकारात्मक सोच के लिए प्रोत्साहित करें।
निष्ठा से भरपूर विचारों को बार-बार घुमाइए
मुनिश्री ने कहा कि निष्ठा से भरपूर विचारों को बार-बार घुमाइए कि मैं सफल आत्मा हूं, सफलता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है। मैं हिम्मतवान आत्मा हूं, कर्मठ और कुशल हूं, मेरे संकल्प में पर्वत जैसी दृढ़ता है, दृढ़ता ही मेरा संबल है। मुझे इस संबल को लेकर असंभव को संभव कर दिखाना है। प्रसन्नता एवं धैर्य से करें प्रतिकूलता का सामना। साहसी वह है जो इन प्रतिकूलताओं में भी प्रसन्नचित रहता है और धैर्य से उसका सामना करता है। कायरता को अपने जीवन में स्थान न दें, क्योंकि कायरता न केवल उन्नति में बाधक है, बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य को भी नष्ट कर देती है।
जीवन में बाधाएं हीन भावनाओं से ही आती हैं।
मुनिश्री ने कहा कि अति साहस के उद्वेग से बचें। निराशाजनक विचारों से बचें, क्योंकि जीवन में बाधाएं हीन भावनाओं से ही आती हैं। दृढ़ता साहस एवं पराक्रम से असंभव भी संभव हो जाता है। रास्ते में आने वाली समस्याओं पर नहीं बल्कि उनके समाधान पर ध्यान केन्द्रित करें। सफलताएं कभी भी सुविधाओं और साधनों की मोहताज नहीं होती। सफलता के लिए सबसे जरूरी तत्व होता है साहस। निराश मत हो, गहन अंधकार में भी रोशनी की किरण मिल ही जाती है। पहाड़ जैसी विपत्ति को दूर करने के लिए थोड़ा-सा साहस भी पर्याप्त है।