आसान नही है बीजेपी के सपने को पूरा करना..डगर बहुत मुश्किल है श्रीमंत..

जयेश कुमार
भोपाल।राज माता विजया राजे सिंधिया की राजनीतिक डगर पर श्री मन्त ज्योतिरादित्य सिंधिया चल तो पड़े है लेकिन ग्वालियर चंबल की राहे आसान नही है।  मध्यप्रदेश की 26 विधानसभा सीटों होने वाले उपचुनाव में 22 सीटों पर श्रीमंत सिंधिया के खास समर्थक को बतौर भाजपा प्रत्याशी चुनाव लड़ा जाना सुनिश्चित है। ये वही सिपेसालार है जिन्होंने मंत्री पद और अपनी विधायकी दाव पर लगा कर अपने महाराज सिंधिया का साथ बनाये रखा और जब सिंधिया बीजेपी में आये तो ये भी आ गए...ये राजनीति में पहली बाद देखा गया कि राजनीति में पद की चिंता किये बगैर की सरकार में काबिज मंत्री,विधायक और नेताओं ने अपने नेता के लिए पार्टी को छोड़ा है...
ये बात तो अपने नेता के लिए समर्थन की है लेकिन   अब परीक्षा जनता यानी मतदाताओ के बीच जाकर जीत की है...अब स्थितियां बदली है मतदाताओ में मुख्य रूप से जो मतदान कर रहा है वह किसी न किसी राजनैतिक पार्टी से जुड़ा हुआ है...ओर महाराज की लड़ाई अंचल की उन दोनों ही पार्टियों से है जिसमे वह थे और अब ज्वाइन कर आ गए है...यानी पहले कांग्रेस में ओर अब भाजपा में आ गए।कांग्रेस श्रीमंत को किसी हर हालत में हराना चाहती है और अंचल के  बीजेपी के पुराने नामी नेता नही चाहते कि सिंधिया के सिपेसालर जीते...हालांकि उपचुनाव में श्रीमंत के समर्थकों की जीत की राह में कांग्रेस से गद्दारी के दाग से इनकी फजीहत हो रही है ओर दूसरा बड़ी फजीयत स्थानीय भाजपा नेताओं के अलावा कार्यकर्ताओ  को भी श्रीमंत के ये दरबारी फूटी आंख नहीं सुहा रहे हैं। उन्होंने  श्रीमंत के समर्थकों को हराने की अंदरूनी तौर पर पूरी स्क्रिप्ट तैयार कर रखी है। ऐसे में जीत की संभावना नही बिल्कुल नही के बराबर है ।सवाल उठना लाजमी है... भाजपा सभी 22 सीटें बचा नही पाई , तो श्रीमंत क्या होगा...? सिंधिया समर्थक उपचुनाव में जिन 22 सीटों पर भाजपा प्रत्याशी होंगे, उन अंचलों के बीजेपी कार्यकर्ताओं से  सिंधिया की ना तो सीधे मुलाकात हुई ना कोई बड़ी बैठक... हालांकि बीजेपी ने इस समस्या का रास्ता उन नेताओं को सौप दिया जो चनाव में कांग्रेस के इन्ही नेताओ से हारे थे जब ये नेता कांग्रेस में थे।अब उपचुनाव में क्या स्थितियां-परिस्थियां बनने वाली हैं...बड़ा मुश्किल है...कल जिन नेताओ ने बीजेपी की बड़ी साख वाले नेताओं को धूल चटाई...उन्ही नेताओ के समर्थन में वोट मांगना आसान नही होगा... चुनावी परिदृश्य उभर रहा है, वो अविश्वसनीय हो सकता है।कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आये नेताओ के कांग्रेसी समर्थक की अपने नेताओं से कांग्रेस छोड़ने से उतनी नाराजगी नहीं है, जितनी नाराजगी उन्हें इस बात से है कि, जिन्हें उन्होंने अपना वोट देकर जनप्रतिनिधि चुना। विधायक बनाया। वह अपने नेता श्रीमंत के मोहपाश सब छोड़ कर बैठ गए।हालांकि दबी जुबा ये बात भी सामने आई थी कि कमलनाथ सरकार गिराने और शिवराज सरकार बनवाने के बदले प्रत्येक को कुछ कुछ मिलने का ऑफर था । इस बात का स्ट्रिंग ऑपरेशन न्यूज़ चैनलों के माध्यम से सामने आया था। हालांकि किसने क्या लेनदेन किया किसने लोकतंत्र की बोली लगाई  इसके कोई पुख्ता सबूत सामने नहीं आए हैं। लेकिन मतदाता मानते है उनके दिए वोट के साथ धोखा हुआ है। उपचुनाव में कांग्रेस निश्चित ही महाराज गद्दार है, को अपना नारा और मुद्दा बनाएगी। भाजपा के स्थानीय नेता जो कल तक श्रीमंत को देश के प्रति गदारी की मूरत दिखा कर चुनाव ने जीत हासिल कर रहे थे आज वो नही चाहते कि उनके ऊपर आकर सिंधिया बैठे...सिंधिया के क्योकि 22 प्रत्याशियों की जीत से राजनीतिक समीकरण भी बदल जाएंगे...सिंधिया केंद्र में मंत्री बने या ना बने प्रदेश में आगामी मुख्यमंत्री बन काबिज हो सकते है...ओर ऐसा हुआ तो अंचल के बड़े नेता महाराज के दरबारी बनने को मजबूर हो जाएंगे।
ऐसे में नाराज भाजपा नेता इन्हें जीतने नहीं देंगे
इन सभी 22 सीटों पर श्रीमंत समर्थकों को चुनाव लडा़ए जाने से स्थानीय भाजपा नेताओं में अंदरूनी तौर पर बेहद नाराजगी है। ये नाराजगी पिछले पांच महीनों में अलग-अलग स्तर पर कई बार सामने भी आ चुकी है। हालांकि भाजपा के रणनीतिकार कह रहे हैं कि, जो नेता नाराज थे, उन्हें समझा-बुझा लिया गया है। अब कहीं कोई नाराजगी नहीं है। लेकिन ग्वालियर चंबल अंचल पर बीजेपी के सदस्यता अभियान में नाराजगी खुल कर सामने आई।कई बड़े नेता मंच पर नही दिखे तो कुछ को बुलाया ही नही गया। सतही तौर पर नाराजगी सामने थी लेकिन बीजेपी का हाई कमान सब कुछ शांत दिखाई दे ऐसी कोशिश कर रहा है।इधर कांग्रेस भी अंदरूनी तौर पर विद्रोह ओर स्थानीय अंसतुष्ट नेता इंतजार कर रहे हैं जिससे श्रीमंत को निपटाया जा सके।


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