एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संम्पन्न हुई,यमन,सीरिया, फिलिस्तीन सहित अन्य कई राष्ट्रों के विषय विशेषज्ञों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये
पूजा जयेश
इंदौर।मीडिया एंड सोसाइटी इन डेवलपिंग नेशन्स विषय पर पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला देवी अहिल्या विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संम्पन्न हुई,जिसमें यमन,सीरिया, फिलिस्तीन सहित अन्य कई राष्ट्रों के विषय विशेषज्ञों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये। संगोष्ठी का शुभारंभ विषय माँ सरस्वती के पूजन एवं दीप प्रज्वलन के पश्चात कुलगीत गाकर हुआ।
अतिथि देवो भवः की संस्कृति वाले हमारे भारत देश में विदेशी मुल्कों से आये शोधार्थियों का स्वागत विश्विद्यालय के पत्रकारिता भवन में कुमकुम का तिलक लगाकर किया गया।
पत्रकारिता विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ सोनाली नरगुंदे द्वारा अतिथि उद्धबोधन के साथ अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के विषय वस्तु व विदेशी राष्ट्रों से पधारें अतिथियों का परिचय कराया। आपने संगोष्ठी में भाग ले रहे सभी शोधार्थियों को इस संगोष्ठी के माध्यम से मीडिया जगत को नया आयाम प्रदान करने हेतु शुभकामनाएं दी।
साथ ही संगोष्ठी में पधारें अतिथियों का स्वागत सूत की माला से किया।
पत्रकारिता विभाग द्वारा आयोजित इस एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लेने के लिए अतिथि के रूप में
डॉ.फिरास सईद (सीरिया)
मिसेज़ लीन लिसा (सीरिया)
मिसेज़ हनन अहमद अली - अल- जरमुजी (यमन)
मिस्टर अला हा -अल-अल्ह्मा (फिलिस्तीन)
मिस्टर जोसवा बोइट (केन्या)
मिस्टर सोरी मेंमैंडी कॉरमा (घाना)
मुख्य रूप से उपस्थित रहें।जिन्होंने कॉन्फ्रेंस में अपने शोध पत्रों को प्रस्तुत किया।
संगोष्ठी के उदघाटन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में
डॉ. जयंत भिसे (चिंतक,विचारक),
मा. डॉ .राजेश दीक्षित , (कुलपति, रेनेसॉ यूनिवर्सिटी)
सीरिया से पधारें डॉ.फिराज सैयद व पुष्पेंद्र पाल सिंह (माध्यम, मध्यप्रदेश जनसंपर्क भोपाल) शामिल हुए ।
"जहां मीडिया अपना काम कर रहा है। वही समाज अपना काम कर रहा है।"
अतिथि उद्धबोधन में श्रोताओं को संबोधित करते हुए,
जयंत भिसे ने कहा -, हमें सबसे पहले माध्यम और समाज के बीच का अंतर समझना होगा। जहां पाश्चात्य संस्कृति में अंतिम इकाई व्यक्ति है, वही भारतीय संस्कृति में अंतिम इकाई परिवार है। हमें पद पर रहते हुए जिम्मेदारियों का पालन करना चाहिए, जहां मीडिया अपना काम कर रहा है। वही समाज अपना काम कर रहा है, यह समाज पर छोड़ दें कि क्या गलत है, और क्या सही? हमें समाज की तासीर को समझते हुए संदेश का सूचनाओं का प्रवाह करना चाहिए। क्योंकि जो परिवार के साथ चलता है,वही अच्छे समाज का निर्माण करता है और जब समाज अच्छा बनता है।तब माध्यम चाहे जो भी हो सूचनाओं का प्रभाव सरल और सुगम होता है। अयोध्या और 370 जैसे ज्वलंत मुद्दों पर मीडिया ने जिस प्रकार अपना असर छोड़ा है। वह हमारे समाज में प्रशंसनीय है इस प्रकार का मीडिया हमारा समाज चाहता है जो पारदर्शी हो।
"मीडिया और पत्रकार को बदलते समाज का आईना।"
डॉ. राजेश दिक्षित ने कहा 21वीं सदी में डिजिटल मीडिया के साथ होकर भी हम आज उस दौर में जी रहे हैं, जहां पर जानकारियां फायर पान की तरह परोसी जा रही है जो दिखने में बड़ी और ज्वलंत है। वह हम तक पहुंचते-पहुंचते मीठी और स्वादिष्ट होती है, जो मनोरंजन का काम करती है। जहां उन्होंने मीडिया और पत्रकार को बदलते समाज का आईना कहा वही पत्रकार को टूल और मीडिया को एक शक्ति के रूप में देखा उनका कहना है, जब तक आप अपनी निधि सफलता को समाज के साथ नहीं बाटेंगे तब तक आप नायक नहीं बन सकते। अपनी बात रखने से पहले आपको यह सोचना होगा कि इसका परिणाम क्या है ? उसे पढ़ना समझना और रिसर्च के बाद देखना होगा इसका क्या प्रभाव आपके समाज पर पड़ेगा, कि कैसे आपका एक शब्द पूरी चीज बदल के रख सकता है।
"हमारी संस्कृति की जड़ें इतनी मजबूत है कि जिसे कोई काट नहीं सका ।'
डॉ पुष्पेंद्र पाल सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि -, दुनिया का हर व्यक्ति जर्नलिस्ट है । लेकिन अपनी जिम्मेदारियों से है वंचित , सोशल मीडिया के इस दौर में आज हर व्यक्ति पत्रकार जो अपने निजी स्वार्थ में सूचनाओं का को सन प्रेषित करता है। जहां उसे बहुत ही नहीं होता कि वह किस प्रकार की सूचनाओं का आदान प्रदान कर रहा है कि उसका प्रभाव हमारे समाज पर क्या पढ़ रहा है जहां एक और हम मीडिया के द्वारा परंपराओं का संरक्षण करने की बात करते हैं। वही आज दिन भर में एक न्यूज़ बड़ी मुश्किल से ऐसी होती है, जो हमारे और हमारे समाज पर असर कर जाती है तो यह किस प्रकार का डिजिटल मीडिया प्रचलन में है । कभी-कभी ऐसा लगता है की मीडिया समाज के साथ चल रहा है तो कभी मीडिया नया समाज बनाने का प्रयास कर रहा है, जिससे एक प्रकार की टकराव की स्थिति निर्मित करता है ।
विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में जहां कई शासकों ने शासन किया उसके बावजूद भी हमारी संस्कृति की जड़ें इतनी मजबूत है कि जिसे कोई काट नहीं सका ।भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जहां नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है वही मीडिया द्वारा नासमझी में भी गलत सूचनाओं देते हैं जिसका परिणाम समाज में स्थिर विचारों से मिलता है। जो हमें 5 से 10 साल पीछे ले जाता है तो यह किस प्रकार का अपडेट मीडिया है?जहां पहले मीडिया का काम सूचना देना शिक्षित करना और अपडेट रखना था वहीं वर्तमान में मीडिया का परिदृश्य सिर्फ सूचना का आदान प्रदान करना ।
अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का संचालन दो तकनीकी सत्रों किया गया। जिसमें पहले तकनीकी सत्र में डॉ. संजीव गुप्ता ( विभागाध्यक्ष, पत्रकारिता विभाग,माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय भोपाल)
डॉ. मीनु कुमार ( पत्रकारिता विभाग , देअविवि )
वहीँ दूसरे तकनीकी सत्र में
सीरिया से आये विषय विशेषज्ञ डॉ. फिरास साईड व डॉ. अनुराधा शर्मा द्वारा शोधकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत किये गए शोध पत्रों की समीक्षा की गई।
पहले तकनीकी सत्र के में सीरिया के शोधार्थी डॉ. फिराज सैय्यद व उनके बाद व उनकी पत्नी लीन लिसा ने अपने रिसर्च पेपर के माध्यम से बताया कि सीरिया में किस तरह की परेशानियां है। चाहे वह राजनैतिक मतभेद , कुपोषण , कल्चर ,औऱ सोशल मीडिया से बदलते हालात में मीडिया किस तरह वहाँ रोल प्ले कर रहा है?
उस पर अपनी टिप्पणी दी।
पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला के शोधार्थी सौरभ मिश्राम ने अपने शोध पत्र में बताया कि- एम्पोवेर्मेंट पर जिस तरह से आज कल एम्पावरमेंट विषय पर फिल्मे बनाई जा रही है वो भारत में बदलाव का कार्य कर रही है ,जो मीडिया के माध्यम से समाज को विकास करना है।
यमन देश की शोधार्थी मिस.हनन अहमद अली अल जरमुजी ने अपने रिसर्च पेपर के माध्यम से उनके देश यमनकी परंपरा, खेल और भोजन के बारे में बताया कि किस तरह भारतीय बिरयानी को वहाँ बड़े चाव से खाया जाता है। जो संचार की शक्ति को बताता है , ओर साथ ही खेद भी जताया कि उनके खेलो को इंटरनेशनल ओलोपिक खेलों में नहीं लिया जाता और खाद्य , ईंधन एवं पानी की समस्या पर प्रकाश डाला।
इतिहास गवाह है तलवार पर कलम हमेशा भारी रही है - डॉ. रेणु जैन
अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र में चिंतक व विचारक श्री चिन्मय मिश्र व देअविवि कुलपति मा.डॉ. रेणु जैन अतिथि के रूप में उपस्थित रहें।कुलपति डॉ. रेणु जैन ने सभी शोधकर्ताओं व श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा कि हमारे पास दो ही हथियार है एक तलवार तो दूसरा कलमऔर हमेशा अंत में कलम ही तलवार को मात देती है।
आपने अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में पधारे विदेशी अतिथियों व शोधकर्ताओं को शुभकामनाएं दी व पत्रकारिता विभाग को अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के सफ़लता के लिए बधाई दी। अपने कहा कि इस संगोष्ठी से निश्चित ही मीडिया जगत के कार्यों व इससे जुड़े शोधकर्ताओं व विद्यार्थियों को नई दिशा प्राप्त होंगी।समापन सत्र के अतिथि चिन्मय मिश्र ने श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा कि वर्तमान परिपेक्ष्य में मीडिया के मापदंड दोहरे होते प्रतीत होते है। सोशल मीडिया के प्रचलन से प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का कार्य बढ़ा है। आपने अपने वक्तव्य में बदलते समाज के समीकरण को दर्शाते हुए समाज में बढ़ रही प्रतिस्पर्धा को समझाया साथ ही अपने इस बदलते वक्त के दौरान महसूस किए अपने अनुभवों को साझा किया।
समापन सत्र में श्री चिन्मय मिश्र, कुलपति डॉ. रेणु जैन व विभागाध्यक्ष डॉ. सोनाली नरगुंदे द्वारा संगोष्ठी में शोध पत्र प्रस्तुतकर्ता शोधार्थियों व वोलेंटियर्स को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।कार्यक्रम का संचालन डॉ. कामना लाड, ऐश्वर्या इंगले,दिव्या हूरकट ने किया। कार्यक्रम के अंत में विभागाध्यक्ष डॉ. सोनली नरगुंदे द्वारा पूरी संगोष्ठी का सार समापन सत्र के अतिथियों को बताया गया व संगोष्ठी में सभी राष्ट्रों व राज्यों से पधारें अतिथियों व शोधार्थियों का आभार माना।